Monday 6 October 2008

स्वयं दर्शन

मैं कौन हूँ, क्या हूँ? मुझे ख़ुद की तलाश है शायदमैं जानना चाहता हूँ मैं यहाँ क्यूँ हूँ? मेरा उद्देश्य क्या है? अतीतसे मुझे सरोकार नही, भविष्य की चिंता भी नहीं है मुझे, फ़िर मैं बेचैन क्यूँ हूँ?

इस पल में कुछ कमी सी हैनहीं शायद मैं भटक रहा हूँ..

अगर मैं सर्व विद्यमान ईश्वर का अंश हूँ तो मैं दिशाहीन नही हो सकता हूँ, मैं परमात्मा का अंश आत्मा हूँ, मैंसर्वविद्यमान हूँ. मैं था, मैं होऊंगा, पर मैं कल भी था, आज भी हूँ और कल भी रहूँगा|

समय मैं हूँ, भूत मैं हूँ, और भविष्य भी मैं हूँ….. केवल मैं| यही मेरा परिचय है| फ़िर मैं भूल क्यूँ जाता हूँ? क्यूँ मैं कभी भाई, कभी बेटा, कभी माँ, कभी दोस्त, कभी शिक्षक, कभी शिष्य बन जाता हूँ?

ये मेरा स्वाभाव है| सर्वविद्यमान होने के लिए मुझे अनेक रूप धारण करने पड़ते हैं| तो बस मैं धारण कर लेता हूँ| किंतु भूल ये होती है की पात्र अदा करते-करते मैं उस चरित्र में ही खो जाता हूँ| मैं वही होता हूँ, परन्तु अपनाअस्तित्व मैं खो देता हूँ| यही भूल मेरे दर्द का कारण बनती है|

आज मैं उस सर्व शक्तिमान, सर्वत्र विद्यमान परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ की हम सबका मार्गदर्शन करें| हम अपनाअस्तित्व याद रख पाएं, इस जीवन पथ पर अग्रसर होते हुए अपने प्रयोजन को सफल कर पाएं ऐसा आशीर्वादआज मैं मांगता हूँ! शान्ति!!

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